Wednesday, October 28, 2009

दर्दभरा फ़साना


एक परिंदे का दर्दभरा फ़साना था,
टूटे हुए पंख और उड़ते हूए जाना था।
तूफान तो वो झेल गया पर हुआ एक अफ़सोस,
वही डाल टूटी जिसपे उसका आशियाना था।

6 comments:

डॉ. राधेश्याम शुक्ल said...

sachitra prastuti sundar lagi.

Yugal said...

बहुत अच्छा लेख है। ब्लाग जगत मैं स्वागतम्।

अजय कुमार said...

स्वागत और शुभकामनाये , अन्य ब्लॉगों को भी पढ़े और अपने सुन्दर विचारों से सराहें भी

Anonymous said...

एक परिंदे का दर्दभरा फ़साना था,
टूटे pankhon se उड़ते हूए जाना था।
तूफान तो झेल गया पर अफ़सोस,
वही डाल टूटी जिसपे आशियाना था।

रचना गौड़ ’भारती’ said...

शानदार पंक्तियां । बधाई ।
लिखते रहिए । शुभकामनाए

Anonymous said...

Bahut khub kahi.