........वक्त नहीं
हर खुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हँसी के लिए वक्त नहीं।
दौड़ती हुई इस दुनियाँ में,
आजकल ज़िन्दगी के लिए ही वक्त नहीं।
माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं।
सारे जाने-पहचाने नाम मोबाइल में है,
पर किसीसे दोस्ती के लिए वक्त नहीं
पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं।
सारे जाने-पहचाने नाम मोबाइल में है,
पर किसीसे दोस्ती के लिए वक्त नहीं
गैरों की अब क्या बात करें हम,
जब अपनों को अपनो के लिए ही वक्त नहीं।
पराये एहसानों की क्या कदर करें,
जब अपने सपनों के लिए ही वक्त नहीं।
आंखों में है नींद भरी,
पर यहाँ सोने का भी वक्त नहीं।
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर अब तो रोने का भी वक्त नहीं।
पर यहाँ सोने का भी वक्त नहीं।
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर अब तो रोने का भी वक्त नहीं।
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा।
के, हरपल मरनेवालों को,
जीने के लिए भी वक्त नहीं।
1 comment:
Very true.......
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