Friday, October 30, 2009

........वक्त नहीं


........वक्त नहीं

हर खुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हँसी के लिए वक्त नहीं।
दौड़ती हुई इस दुनियाँ में,
आजकल ज़िन्दगी के लिए ही वक्त नहीं।

माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं।
सारे जाने-पहचाने नाम मोबाइल में है,
पर किसीसे दोस्ती के लिए वक्त नहीं

गैरों की अब क्या बात करें हम,
जब अपनों को अपनो के लिए ही वक्त नहीं।
पराये एहसानों की क्या कदर करें,
जब अपने सपनों के लिए ही वक्त नहीं।

आंखों में है नींद भरी,
पर यहाँ सोने का भी वक्त नहीं।
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर अब तो रोने का भी वक्त नहीं।


तू
ही बता ज़िन्दगी,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा
के, हरपल मरनेवालों को,
जीने के लिए भी वक्त नहीं

Wednesday, October 28, 2009

दर्दभरा फ़साना


एक परिंदे का दर्दभरा फ़साना था,
टूटे हुए पंख और उड़ते हूए जाना था।
तूफान तो वो झेल गया पर हुआ एक अफ़सोस,
वही डाल टूटी जिसपे उसका आशियाना था।

Wednesday, October 14, 2009

शुभ दिपावली

शुभ दिपावली


शुभं करोती कल्याणं आरोग्यम धनसंपदा ।
श्त्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
दीप ज्योति: परब्रम्हा दीप्ज्योतिजनार्दन: ।
दीपो हस्तु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥

शुभ धनत्रयोदशी